प्राचीन भारत में मौर्य वंश की स्थापना करने वाले महान शासक चंद्रगुप्त मौर्य की। मौर्य वंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी और मौर्य वंश चंद्रगुप्त मौर्य के शासन के दौरान उभरा। चंद्रगुप्त मौर्य प्राचीन भारत में मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे। एक महँ सम्राट जिन्होंने पुरे भारतवर्ष को एकत्रित कर ,छोटे छोटे छोटे प्रांतो में बटे हुए साम्राज्य को भारतवर्ष बनाया | चंद्रगुप्ता एक ऐसे शाशक थे जिन्होंने नंदा डायनेस्टी के बाद मौर्या साम्राज्य को एक उत्तचाई दी | इतने बड़े साम्रज्य को बनाने में वो अकेले नहीं थे | जैसा की आपको पता होगा किसी भी मंजिल को पाने के लिए हमे एक मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है , वासे ही इस महँ साम्रज्य को बचने के लिए चन्द्रगुप्त के मार्गदर्शक बने उनके गुरु कौटिल्य या जिन्हे पूरा भारत वर्ष एक चाणक्य के नाम से भी जानते है | हम इस लेख के माध्यम से चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन से लेकर उनकी मृत्यु तक की सफलताओ के बारे में जानने की कोसिस करेंगे |
मौर्य वंश का इतिहास जानने के साधन/Sources of Muarya Dynasty
- अर्थशास्त्र
- मेगस्थनीज़ इंडिका
- मिलिन्दपन्हो
- विष्णु पुराण
चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास / Chandragupta Maurya History in Hindi
क्रमांक | ||
1 | पूरा नाम | चन्द्रगुप्त मौर्य |
2. | जन्म | 340 ईसा पूर्व |
3. | जन्म स्थान | पाटलीपुत्र , बिहार |
4. | उतराधिकारी | बिन्दुसार |
5. | पत्नी | दुर्धरा |
6. | बेटे | बिंदुसार अशोका सुसीम, विताशोका |
7. | चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु की तिथि | 297 ईशा पूर्व |
8. | शैक्षिक योग्यता | शास्त्र और विज्ञान |
चंद्रगुप्त मौर्य कौन थे / Who was Chandragupta Maurya?
चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बहुत बड़ा था।चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत के कई छोटे-बड़े खंडित राज्यों को एक साथ मिला दिया और उन्होंने एक बहुत बड़े साम्राज्य का निर्माण किया। चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के दौरान, मौर्य साम्राज्य पूर्वी बंगाल और असम से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक उत्तर भारत में कश्मीर और नेपाल तक फैला हुआ था। चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य इन देशों में ही नहीं बल्कि दक्षिण -भारत के पठारी क्षेत्रों में भी फैला हुआ था।.
चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य के साथ नंद साम्राज्य के अंत की घोषणा की थी। उसने नंद वंश के साम्राज्य को समाप्त कर मौर्य वंश की स्थापना की। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी कुशल रणनीति के बदौलत न केवल भारत बल्कि आसपास के कई देशों पर शासन किया। चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग 23 वर्षों के सफल शासन के बाद सभी प्रकार के सांसारिक सुखों आदि का त्याग कर दिया और उसके बाद उन्होंने खुद को एक जैन भिक्षु में बदल लिया।
लोगों का कहना है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने सल्लेखना की, सल्लेखना हर किसी के करने की बस की बात नहीं है। सल्लेखना ऐसी तपस्या है, जिसमें किसी भी व्यक्ति को अपने लिए ऐसा व्रत रखना होता है कि वह कुछ भी नहीं खाएगा और जीवन भर भूखे रहकर अपना पूरा जीवन भगवान की पूजा करनी होती है।
चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन / Early Life of Chandragupta Maurya
मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य थे। वह मगध पर शासन करने वाले मौर्य वंश के पहले राजा भी थे। वह 322 ईसा पूर्व में राजा बने। चंद्रगुप्त मौर्य 298 ईसा पूर्व तक शासन किया और इनकी माता का नाम ‘मूरा ‘ था। मूर का अर्थ है ‘मौर्य’ चंद्रगुप्त की माता के नाम पर उनके वंश का नाम मौर्य वंश रखा गया। चंद्रगुप्त मौर्य की उत्पत्ति के बारे में इतिहासकारों के अपने अलग-अलग मत दिय हैं | और ग्रीक और जस्टिन विद्वानों ने चंद्रगुप्त मौर्य को ‘सैंड्रोकॉटस’ के रूप में प्रस्तुत किया है, और विलियम जोन्स नाम के एक विद्वान ने ये साबित भी कर दिया था कि सैंड्रोकोटस चंद्रगुप्त मौर्य थे। रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में ‘चंद्रगुप्त’ नाम का देखने को मिलता है। इतिहासकारों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने महज 25 साल की उम्र में नंद वंश के राजा धनानंद को हरा दिया था।
नंद वंश के राजा धनानंद को हारने में चंद्रगुप्त मौर्य के साथ साथ उनके गुरु “’चाणक्य” का बहुत बड़ा योगदान रहा था। चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य ने ‘अर्थशास्त्र’ नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में मौर्य वंश के इतिहास का वर्णण मिलता है। चंद्रगुप्त और चाणक्य दोनों ने मिलकर पाटलिपुत्र पर मौर्य वंश की नींव रखी।
Early life of chandragupta maurya history in hindi/चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन के बारे में यदि बात करे तो मौर्य वंश की उत्पत्ति की तरह चंद्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन भी अंधकारमय है। उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में जानने के लिए हमें मुख्य रूप से बौद्ध स्रोतों पर निर्भर रहना होगा। हालाँकि चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था | लेकिन बचपन से ही उनमें महानता के सभी लक्षण थे, जो एक उज्ज्वल भविष्य का संकेत देते थे।
बौद्ध ग्रंथों के अनुसार चंद्रगुप्त के पिता मोरिया नगर के मुखिया थे। जब वे अपनी माँ के गर्भ में थे, तब उनके पिता की एक छोटी सी लड़ाई में मृत्यु हो गई थी। उनकी मां को उनके भाई सुरक्षा के लिए पाटलिपुत्र लाए थे। यहीं पर चंद्रगुप्त का जन्म हुआ | चन्द्रगुप्त को एक गोपालक ने अपने पुत्र के तरह पला । जब चंद्रगुप्त बड़ा हुआ तो उसने उसे एक शिकारी को बेच दिया।
वह एक शिकारी के गाँव में पला-बढ़ा और उसे जानवरों की देखभाल में रख लिया गया। चंद्रगुप्त अपनी प्रतिभाओ के कारण जल्द ही अपने से वयस्क बच्चों के बीच प्रसिद्धि प्राप्त की। तथा मंडली का राजा बनकर लड़कों के बीच के झगड़ों को सुलझाता था | और उनके झगड़ों का फैसला किया करता था। इसी तरह एक दिन जब चंद्रगुप्त ‘राजकिलम’ नाम के खेल में व्यस्त थे तो चाणक्य कही से चले आ रहे थे। तब चाणक्य ने चंद्रगुप्त को देखा और अपनी सूक्ष्म दृष्टि से इस बालक के भविष्य के गुणों के अनुमान लगा लिया फिर चाणक्य ने उस शिकारी को 1,000 कार्षापन देकर चंद्रगुप्त को खरीद लिया। चाणक्य चंद्रगुप्त के साथ तक्षशिला आए। उस समय तक्षशिला शिक्षा का प्रमुख केंद्र था | और चाणक्य वहां के शिक्षक थे। उन्होंने चंद्रगुप्त को सभी कलाओं और विज्ञानों की विधिवत शिक्षा दी। शीघ्र ही चन्द्रगुप्त सभी विद्याओं में पारंगत हो गया। चंद्रगुप्त अब युद्ध विद्या में भी पर्याप्त निपुण हो चुका था।
चन्द्रगुप्त द्वारा मौर्य वंश या मौर्य साम्राज्य की स्थापना,साम्राज्य विस्तार
मौर्य वंश या मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) प्राचीन भारत में एक शक्तिशाली राजवंश था। मौर्य वंश ने 137 वर्षों तक भारत पर शासन किया। मौर्य साम्राज्य की स्थापना का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य और उनके मंत्री चाणक्य को जाता है। इस साम्राज्य की शुरुआत पूर्व में मगध साम्राज्य में गंगा नदी (आज के बिहार और बंगाल) के मैदानों से हुई थी। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी।
चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में अपने साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की ओर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उसने सिकंदर के आक्रमण के बाद पैदा हुए कई छोटे-छोटे क्षेत्रीय राज्यों के बीच आपसी मतभेदों का फायदा उठाया और 316 ईसा पूर्व तक, मौर्य वंश ने पूरे उत्तर-पश्चिमी भारत पर अधिकार जमा लिया था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक के शासनकाल में मौर्य वंश का बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ। सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान और सबसे शक्तिशाली बनकर पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुआ।
जिस समय चंद्रगुप्त राजा बने, उस समय भारत में राजनीतिक स्थिति बहुत खराब थी। चंद्रगुप्त ने सबसे पहले एक सेना तैयार की और सिकंदर के खिलाफ युद्ध शुरू किया। 317 ईसा पूर्व इस समय तक उसने पूरे सिंध और पंजाब क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। अब चंद्रगुप्त मौर्य सिंध और पंजाब का एकमात्र शासक बन गया। पंजाब और सिंध की जीत के बाद, चंद्रगुप्त और चाणक्य ने घनानंद को नष्ट करने के लिए मगध पर हमला किया। इस युद्ध में क्रूर धनान्द चन्द्रगुप्त के हातो मारा गया । अब चंद्रगुप्त भारत के विशाल साम्राज्य मगध का शासक बन गया। चंद्रगुप्त ने उत्तर पश्चिमी भारत के यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को हराया और क्षेत्र (हेरात), अरकोसिया (कंधार), जेड्रोसिया (मकरान / बलूचिस्तान), पेरोपेनिसदाई (काबुल) के क्षेत्र पर कब्जा करके एक विशाल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की। सेल्यूकस ने अपनी बेटी हेलेना (कार्नेलिया) का विवाह चंद्रगुप्त से किया। उन्होंने मेगस्थनीज को चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में राजदूत नियुक्त किया।
चंद्रगुप्त मौर्य ने पश्चिमी भारत में सौराष्ट्र पर विजय प्राप्त की और इसे अपने प्रत्यक्ष शासन में शामिल किया। गिरनार शिलालेख (150 ईसा पूर्व) के अनुसार, पुष्यगुप्त इस क्षेत्र में वैश्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य का राज्यपाल था। इससे सुदर्शन झील का निर्माण हुआ। दक्षिण में, चंद्रगुप्त मौर्य ने उत्तरी कर्नाटक तक विजय प्राप्त की।
चंद्रगुप्त मौर्य के विशाल साम्राज्य में काबुल, हेरात, कंधार, बलूचिस्तान, पंजाब, गंगा-यमुना का मैदान, बिहार, बंगाल, गुजरात और विंध्य और कश्मीर के क्षेत्र शामिल थे, लेकिन चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने साम्राज्य का विस्तार उत्तर-पश्चिम में ईरान तक किया। . पूर्व में बंगाल से और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक तक। अंतिम समय में चंद्रगुप्त मौर्य जैन मुनि भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला गए। 298 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य ने उपवास करके अपने शरीर का त्याग किया।
सिकंदर और चंद्रगुप्त मौर्य का युद्ध / चंद्रगुप्त मौर्य की जीत
हालाँकि, एलेक्जेंडर या सिकंदर तृतीय का जन्म 356 ईसा पूर्व में हुआ था जो बाद में मेसिडोनिया के 17वें राजा बने। सिकंदर अपने साम्राज्य के विस्तार के दौरान भारत की ओर रुख किया और 326 ईसा पूर्व में सिंधु राजा पुरुरवा या पोरस के साथ उत्तर-पश्चिमी सीमा पर लड़ाई लड़ी। आज वह इलाका पाकिस्तान में है। उस समय चंद्रगुप्त मौर्य केवल 14 वर्ष के थे जबकि सिकंदर 30 वर्ष के थे।
जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया तो धनानंद मगध साम्राज्य का शासक हुआ करता था। सिकंदर पोरस को हराकर मगध साम्राज्य की ओर बढ़ रहा था, लेकिन वह बीमार पड़ गया और बीमारी के कारण उसकी मृत्यु हो गई। फिर आचार्य चाणक्य की मदद से चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध साम्राज्य से धनानंद को उखाड़ फेंका और 321 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। इसके साथ ही चंद्रगुप्त ने सिकंदर के अधीन क्षेत्रों को मुक्त कराने का अभियान भी शुरू किया। दूसरी ओर, सेल्यूकस भी अपने साम्राज्य का विस्तार करने में लगा हुआ था। इसी क्रम में सिंधु घाटी में दोनों आमने-सामने आ गए।
सेल्युकस और चंद्रगुप्त की लड़ाई/ Chnadragupta Maurya and Seleucus Nicator
सेल्यूकस एक्साइट निकेटर सिकंदर सबसे योग्य सेनापतियों में से एक था और वह सिकंदर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस उत्तराधिकारी बना। वह सिकंदर द्वारा जीती गई भूमि को पाने के लिए उत्सुक था। इस उद्देश्य के लिए 305 ई.पू. उसने फिर से भारत पर आक्रमण किया। सेल्यूकस प्रथम ने भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों को जीतने की फिर से कोशिश की। उसी प्रयास में, उनका सामना चंद्रगुप्त मौर्य से हुआ और दोनों ने सिंधु घाटी और गांधार क्षेत्र में लड़ाई लड़ी, जिसे अब अफगानिस्तान में कंधार के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में सेल्यूकस को चंद्रगुप्त के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। युद्ध दोनों राजाओं के बीच एक शांति समझौते के साथ समाप्त हुआ।
इतिहासकारों का कहना है कि सेल्युकस ने भी अपनी एक बेटी का विवाह चंद्रगुप्त से किया था। उसने चंद्रगुप्त को कई प्रदेश भी सौंपे, बदले में चंद्रगुप्त ने युद्ध में जब्त किए गए 500 हाथियों, सैन्य उपकरणों आदि को वापस कर दिया। इसके बाद सेल्यूकस ने अपने दो राजदूतों मेगस्थनीज और दमिश्क को मौर्य शासन की राजधानी पाटलिपुत्र भेजा। इस युद्ध में जीत के बाद चंद्रगुप्त ने भी अपने साम्राज्य का विस्तार किया। चंद्रगुप्त ने 322 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व तक मौर्य साम्राज्य का नेतृत्व किया जब तक कि उनका पुत्र बिंदुसार जिम्मेदारी संभालने के लायक नहीं हो गए।
सेलुकस निकाटोर और चन्द्रगुप्त मौर्या के बिच सम्झौता
एक TREATY के साथ सेलेक्स निकाटोर और चन्द्रगुप्त मुआर्य के बिच लड़ाई ख़तम होती है | इस समझौते के दौरान सिंधुघाटी जो की सिकंदर जीत चूका था , उसे और अफ़ग़ानिस्तान प्रान्त को मौर्यन साम्रज्य के हाथो सपना था। इस्पे अब चन्द्रगुप्त का शासन था | इसके साथ ही चन्द्रगुप्त ने और सिकंदर के बिच वैवाहिक सम्बंदजः भी जुड़ गया | लड़ाई ख़तम होने के बाद मौर्यन साम्राज्य ने अब पुरे भारतवर्ष में अपना पॉवर स्थापित किया |
चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा की गई अन्य विजयें।
- पश्चिमी भारत पर विजय
इस घटना की जानकारी जूनागढ़ शिलालेख से प्राप्त होती है, जिसके अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य थे, उन्होंने गिरनार प्रांत में सुदर्शन झील का निर्माण कराया था। अशोक के सोपारा देख और गिरनार अभिलेख भी पश्चिमी भारत पर उसके अधिकार की पुष्टि करते हैं। क्योंकि अशोक इन प्रांतों पर विजय प्राप्त करने का दावा नहीं करता है और बिंदुसार क्षेत्रों को जीतने की स्थिति में नहीं था। इसलिए, इन सभी क्षेत्रों को चंद्रगुप्त मौर्य ने जीत लिया था।
- दक्षिण भारत पर विजय
दक्षिण भारत की विजय के बारे में जानकारी अशोक और जैन और तमिल स्रोतों के लेखन से मिलती है। तमिल लेखक मामुलनार ने लिखा है कि मोरियार (मौर्य) जाति ने दक्षिण भारत पर विजय प्राप्त की। इसके अलावा चंद्रगुप्त ने श्रवणबेलगोला में अंतिम सांस ली। एक व्यक्ति केवल मरने के लिए जा सकता है जहां उसका अपना अधिकार है। इसलिए, चंद्रगुप्त मौर्य ने इस अभियान में कर्नाटक तक के क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु और अंतिम समय/ Death of Chandragupta Maurya and his last stage of life
दूसरी और तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान भारत में जैन धर्म अपने चरम पर था। वह 24 साल के राज्य शासन के बाद अपने जीवन के अंतिम चरण में जैन धर्म के अनुयायी बन गए। चंद्रगुप्त 298 ईसा पूर्व में अपने पुत्र बिंदुसार को सत्ता देकर कर्नाटक के लिए रवाना हुए।
जैन परंपरा के अनुसार, उन्होंने संथारा किया, जिसमें साधक अपने शरीर का त्याग करने के उद्देश्य से जीवन भर भोजन का त्याग करता है। कहा जाता है कि भारत के गौरवशाली साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने 5 सप्ताह तक संथारा करने के बाद अपने प्राण त्याग दिए थे। उनकी मृत्यु का वर्ष 297 ईसा पूर्व माना जाता है। बाद में उनके वंश में सम्राट अशोक का जन्म हुआ।
मौर्य साम्राज्य, अशोक, चंद्रगुप्त और कौटिल्य यानि चाणक्य का भारत के इतिहास में बड़ा स्थान है। यूनानी विद्वान मेगस्थनीज भी चन्द्रगुप्त के शासन काल में चार वर्ष तक रहा। अपने साम्राज्य में, उसने दक्षिण को छोड़कर लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया। उनके वंशज अशोक ने भी दक्षिण भारत पर विजय प्राप्त की और पूरे उपमहाद्वीप पर भारतीय सत्ता स्थापित
जैन धरम और चंद्रगुपा मौर्या /JAIN DHARAM and CHANDRAGUPTA MAURYA
जैन लेखो दवरा यह पता चलता है की चन्द्रगुप्त २५ वर्ष राज करने के बाद जैन धरम को अपनाने चले गए थे | वह भद्रभाहु नाम के एक जैन भिक्षु के पास शिक्षा प्रपात करने गया | उस समय तक चन्द्रगुप्त ने अपनी सबसे आखिरी लड़ाई सिकंदर के एक सिपाही के साथ लरी थी | उन्होंने जैन धरम के अपनाने के बाद अपने जीवन के अंतिम दिन जैन आश्रम स्वर्णबेलगोला नामक पहाड़ी पर बिताये | अंत में उपवास कर अपने स्वाश त्याग दिए |
मौर्य साम्राज्य का पतन
मौर्य सम्राट (237-236 ईसा पूर्व) की मृत्यु के बाद, लगभग दो शताब्दियों (322 – 185 ईसा पूर्व) तक चलने वाला शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य बिखरने लगा। अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की थी। इसने मौर्य साम्राज्य के अंत को चिह्नित किया।
मौर्य साम्राज्य पतन के कारण :-
- अयोग्य तथा निर्बल उत्तराधिकारी
अशोक ने पहले ही अपने सभी भाइयों को मार डाला था, इसलिए उसे ऐसे लोगों का सामंत बनना पड़ा जो मौर्य वंश के नहीं थे, परिणामस्वरूप, अशोक की मृत्यु के बाद, उन्होंने विद्रोह किया और स्वतंत्र हो गए और बौद्ध धर्म अपनाने के बाद, अशोक ने अपनी दिग्विजय नीति (चारो दिशाओं में विजय) को। धम्मविजय की नीति में बदल लिया, जिसके परिणामस्वरूप मौर्य वंश के शासकों ने कभी भी अपने राज्य का विस्तार करने का प्रयास नहीं किया।
राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि जालौक ने कश्मीर में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। तारानाथ के वर्णन से ज्ञात होता है कि वीरसेन ने गांधार क्षेत्र में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। कालिदास के मालविकाग्निमित्र के अनुसार, विदर्भ भी एक स्वतंत्र राज्य बन गया। बाद के मौर्य शासकों में से कोई भी एक शासन प्रणाली के तहत सभी राज्यों को व्यवस्थित करने में सक्षम नहीं था। विभाजन की इस स्थिति में यवन संगठित तरीके से सामना नहीं कर सके और साम्राज्य का पतन अवश्यंभावी था।
- शासन का अतिकेन्द्रीकरण
मौर्य प्रशासन में, सभी महत्वपूर्ण कार्य राजा के नियंत्रण में थे। उसके पास वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति करने का सर्वोच्च अधिकार था। ऐसे में अशोक की मृत्यु के बाद उसके कमजोर उत्तराधिकारियों के समय में केंद्रीय नियंत्रण ठीक से काम नहीं कर सका और राजनीतिक व्यवस्था चरमरा गई।
- आर्थिक संकट
बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक ने 84 हजार स्तूपों का निर्माण कराकर खजाना खाली कर दिया और इन स्तूपों को बनवाने के लिए प्रजा पर कर बढ़ा दिया गया और इन स्तूपों के रख-रखाव का भार आम लोगों पर पड़ गया।
- अशोक की धम्म नीति
अशोक की अहिंसक नीतियों ने मौर्य वंश के मौर्यवंश को तोड़ दिया और वह इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर सका –
उदाहरण के लिए आप कश्मीर के सामंती स्वामी को ले सकते हैं जिन्होंने कश्मीर को एक अलग राष्ट्र घोषित किया क्योंकि अशोक बौद्ध थे। क्योंकि वह शैव धर्म का अनुयायी था (जो केवल शिव को शाश्वत ईश्वर मानता है) और बौद्ध धर्म को पसंद नहीं करता था। यह भी सत्य है कि चाणक्य के स्थान पर यदि कोई बौद्ध भिक्षु चन्द्रगुप्त मौर्य का गुरु होता तो उसे अहिंसा का मार्ग दिखा देता और मौर्य वंश की स्थापना नहीं हो पाती।
मौर्यन डायनेस्टी के शाशक /Rulers of mauryan dynasty
Chandragupta Maurya
चन्द्रगुप्त मौर्या भारतीय प्राचीन कल के इत्तिहास में एक महँ शाशक रहे है | यह कुलीन वर्ग से थे इन्होने महान साम्राज्य मारायण वंश की स्थापना की , जिसका नाम उनकी माँ मुरा के नाम पर रखा गया | इन्होने न ही इस साम्राज्य की स्थापना की बल्कि इससे बहुत आगे भी ले गए और सबसे अधिक पूरब -दक्षिण की ओर बढ़ाया |
Bindusara
चंद्रगुप्ता के बेटे थे बिन्दुसार | इन्होने २५ से २८ वर्ष तक शाशन किया | २९७ में इन्होने गाड़ी संभाला , बिन्दुसार दक्षिण भारत में राज्य को फ़ैलाने की कोसिस की ,जोकि आज कर्नाटक है | इनके शाशन काल के दौरान प्रजा में २ बाद विद्रोह उठा | यह विद्रोह कुमार शुशीम के सही से कर्यकाल न करने की वजह उठा जिसे बिनसर ने सम्भाल लिया | लेकिन इसके बाद का विद्रोह वह ठीक न क्र सके और बिच में ही ही उनकी मिर्तु हो गयी | यह विद्रोह अशोक द्वारा खतम किया गया |
Ashoka
अशोका चन्द्रगुप्त मौर्या के पौते थे | बिन्दुसार की मृत्यु के बाद अशोका ने गाड़ी संभाली | देखा जाये तो चन्द्रगुप्त और अशोका में बहुत सी समानताये थी , उनकी राजा बनने से पहले की बात करे तो दोनो ने ही बहुत ज्यादा परिश्रम किया | अशोका बहुत बड़े बड़े लड़ाई लरी पर कलिंगा के युद्ध के बाद उनने बहुत आतम ग्लानि का अनुभव हुआ और उन्होएँ बुद्धा हराम को अपनाया | अशोका द्वारा धम्म को भी बढ़ावा दिया गया , उन्हेने इतिहास में बहुत योगदान दिया है | अशोका के बाद बृहद्रथ ने मौर्यन थ्रोन को संभाला | पर वह ज्यादा वर्षो तक राज न क्र सके और उनकी मृत्यु कर दी गयी |
मौर्यन साम्राज्य का पतन /The decline of Maurya dynasty and Chandragupta Maurya History
ब्राह्मण समाज
- अशोका और बुद्ध की बलिदान विरोधी नीतियों ने ब्रहमनो को बहुत नुकशान पहुंचाया | जो की लोगो द्वारा दिए गए दान पे जिन्दा रहते थे |
- ब्रामण कुल वैदिक बलिदान करवाती थी, जोकि अशोका द्वारा बंद करवा दिए गए |
- कुछ राज्य जो मुआर्याँ राज्य द्वारा ध्वस्त क्र दिए गए थे उनपे ब्राह्मण राज करने लगे | सुंगा और कनवा जोकि मध्य प्रदेश और दूर पुरपि छेत्रो में राज क्र रहे थे , वो ब्राहमण थे |
वित्तीय संकट
- बहुत ज्यादा मात्रा में नौकरशाहों और बड़े आर्मी फाॅर्स पर खर्च , और बहुत बड़े रेजिमेंट के ऑफिसर्स पर खर्च ने मौर्यन साम्राज्य को वित्तीय संकट में दाल दिया |
- बहुत बड़े मात्रा में भौड़ व्हिकशुवो को अनुदान या भिक्षा देना राजकीय खजाने को खाली दिया | खर्चे के लिए बाद में भगवान की सोने की मूर्ति को भी गलना परा |
- खली जगहों पर नई जन्शंख्या को बषाने के लिए भी राजकीइ खजाने को खली करना पारा | जबकि सुरुवात में इनने सभी से कोई कर नहीं लिया जाता था |
दमनकारी नियम
- तक्षिला ने नगरवासियो द्वारा बार- बार यह शिकायत की नौकरशाह सही से काम नही क्र रहे है , अपने पावर का गलत उपयोग कर रहे है |
- कलिंगा के एडिक्ट्स में साफ़ साफ़ पता चलता की अशोका Mahamatras के कामो से न खुश थे , उन्होंने Mahamatras से कहा है की वह नगर वाशियो बिना कारण परेशान न करे |
- अशोका के बहुत प्रयाशो के बाद भी राज्य में दमनकारी नियम लागु थे | और उनके retirement के बाद यह और भी बढ़ गया
साम्राज्य का बटवारा
- अशोका के मृत्यु के बाद मौर्यन साम्रज्य २ हिशो में बट गया -पूरब और पश्चिम | िशने पुरे साम्राज्य को बहुत कमजोर कर दिया |
- क्रिया Rajatarangini जो की एक कश्मीर के इतिहास के ऊपर लिखी गयी किताब है , उसके लेखक कल्हण कहते है की अशोका के मृत्यु के बाद उनके बेटे जलौका ने एक आज़ाद राजा की तरह राज किया |
- और इस बटवारे के बाद उत्तरी दक्षिण से बहुत से अकरम हुए |
अशोका के बाद बहुत कमजोर शाशक
- शोका के बाद आने वाले शाशक बहुत ही कमजोर थे जो इतने बड़े साम्राज्य को सम्भलने में असमर्थ निकले |
- मुआर्याँ साम्राज्य के सुरुवाती ३ राजा बहुत महँ शाशक रहे , उनके बा सस्ने वाले शक्क इस राज को संभल नहीं पाए |
- मौर्यन साम्राज्य के सबसे अंतिम राजा बृहद्रथ थे जिनको उनकीही आर्मी के काममन्दिर ने मार डाला |
राज्यों की आज़ादी
- अशोक के बाद के राजा राज्य को सम्भलने में असमर्थ थे , जिनके हाथो से पूरा भारत वर्ष खंडो में विब्भाजित हो गया |
- तिब्बतन लेखो द्वारा जानने को मिलता है की गांधार राज्य वीरसेन द्वारा चलाया गया |
आंतरिक विद्रोह
बाना भट्ट , जोकि चाणक्य के उत्तराधीकारी और शिष्य थे उन्होंने हर्षचरित्र में बतया है की बृद्धरथा को उनके ही आर्मी के कमांडर ने परेड के दौरान मार दिया था | उसके बाद सुंगा राज की शुरुआत होती है |
मौर्यन साम्राज्य के पतन होने के और भी बहुत से कारन है जिसमे से यहाँ हमने कुछ उप्पर अचे से बताने की कोसिस की है | धन्यवाद :