history of buddhism

बौद्ध धर्म का इतिहास | history of buddhism

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बौद्ध धर्म क्या है ?

बौद्ध धर्म का इतिहास भारत की श्रमण (भिक्षु या साधु ) परंपरा से प्राप्त ज्ञान, धम्म और दर्शन है| श्रमण को पाँच महाव्रतों – सर्वप्राणपात, सर्वमृष्षावाद, सर्वअदत्तादान, सर्वमैथुन और सर्वपरिग्रह विरमण को तन, मन तथा कार्य से पालन करना पड़ता है।बौद्ध धर्म का इतिहास (history of Buddhism) में  ‘श्रमण’ शब्द’ का अर्थ है, परिश्रम करना | अर्थात् यह शब्द इस बात को प्रकट करता है, कि व्यक्ति अपना विकास अपने ही परिश्रम द्वारा कर सकता है | सुख–दुःख, उत्थान-पतन सभी के लिए वह स्वयं उत्तरदायी है।संस्कृत में श्रमण के तीन रूप है – श्रमण, समन, शमन| 

‘समन’ का अर्थ है, सभी के प्रति समभाव रखना | जो बात अपने को बुरी लगती है, वह दूसरे के लिए भी बुरी है |  ‘शमन’ का अर्थ है, अपनी वृत्तियों को शान्त रखना, उनका निरोध करना। ‘श्रमण’ वह जो श्रम द्वारा मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को मानता हो और जिसके लिए व्यक्ति के जीवन में ईश्वर की नहीं श्रम की आवश्यकता है। 

श्रमण परम्परा और सम्प्रदायो का ज्ञान प्राचीन बौद्ध तथा जैन धर्म ग्रंथो से मिलता है |

गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म का इतिहास   | history of buddhism and Gautam Buddha

प्रारंभिक जीवन Early life of Gautam Buddha 

बौद्ध धर्म के इतिहास में गौतम बुध के प्रारंभिक जीवन के बारे में जाने तो ,बुद्ध को बौद्ध धर्म का पिता भी खा जा सकता है | बुद्ध  का जन्म हिमलाय में स्तिथ शाक्य कुल के सक्या राज्य में, राजा शुद्दोधन के यहा हुआ | और उनकी माता का नाम रानी मायादेवी था | बुद्ध को जन्म के पांचवें दिन ‘सिद्धार्थ’ नाम दिया गया और उनके जन्म के पहले सप्ताह में ही उनकी माता की मृत्यु के कारण, उनका पालन-पोषण उनकी मौसी और माता महाप्रजापति गौतमी ने किया था। सिद्धार्त की पत्नी का नाम ‘भद्दकचन’, भद्रकात्यायनी, यशोधरा, बिंबा, या बिंबसुंदरी था | इनके एक पुत्र हुए और उनका नाम राहुल रखा गया | 

गया में बोधिसत्त्व के पास The Bodhisattva at Gaya

गौतम बुध ने सोचा की जैसे गीली लकड़ी में अग्नि नहीं लगाई जा सकती वैसे ही , बिना आराम और पवित्र भोग त्यागे ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है | इसलिए, उरुविल्वा के पास सेनापति गाँव में, उन्होंने निरंजना नदी के तट पर रमणीय क्षेत्र में कठोर तपस्या (प्रधान) करने का फैसला किया। और  भोजन त्याग वह ध्यान में चले गए | लेकिन इससे उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ और उन्होंने तपश्या को त्यागने का निस्चय किया , तभी उनके साथ तपश्या कर रहे तपस्वियों ने उन्हें गालिया दी और उनका साथ चोरेने का निस्चय किया | उसके बाद सिद्धार्त ने निश्च्य किया की वह ध्यान करेंगे और ज्ञान की ओर आगे बढ़ेंगे | 

आगे हम बौद्ध धर्म का इतिहास(history of buddhism) में हम बुद्ध को ज्ञान की प्रापति और धर्मचक्रप्रवर्तन के बारे में पढ़ेंगे | 

बुद्ध को ज्ञान की प्रापति और धर्मचक्रप्रवर्तन | Enlightment of Gautam Buddha and Evangelization

वैशाखी पूर्णिमा को आर्य पर्येश का छठा वर्ष पूरा होने पर बोधिसत्व को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अब सिद्धार्त को लोग भगवान बुद्ध के नाम से समभिधीत करने लगे |  रात्रि के प्रथम यम में उन्हें पूर्वजन्मों की स्मृति का प्रथम ज्ञान, दूसरे यम में दिव्य नेत्र तथा तीसरे यम में प्रतीत्य समुत्पाद का ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके समानांतर, एक मत से सर्वधर्माभिसम के रूप में सर्वकारक प्रज्ञा या संबोधि का उदय हुआ। सारनाथ में ऋषिपट्टन मृगदान में भगवान बुद्ध ने पंचवर्गीय भिक्षुओं को उपदेश देकर धर्मचक्रप्रवर्तन किया। इस प्रथम उपदेश में दो छोरों का परिहार और मध्यमा प्रतिपदा का आश्रय बताया गया है। इन पंचवर्गियों के बाद श्रेष्ठी के पुत्र यश और उनके सम्बन्धियों और मित्रों को सधर्म में दीक्षित किया गया।प्रसिद्ध महापरिनिर्वाण सूत्र बुद्ध के अंतिम चरण यात्रा का वर्णन करता है | अपने अंतिम दिनों में बुद्ध वैशाली पहुंचे जहा आम्रपाली(जोकि एक नर्तिकी थी ) उसने अन्य विक्षु स्नघों के साथ भोजन कराया | उस समय बहुत वर्षा के कारन उन्हें दस्त  diarrhea होने के करण कुशीनगर छोरना पारा और उन्होंने संघ को गौण शिक्षाओं में परिवर्तन करने की अनुमति भी दी और गरीब साधु पर ब्रह्मदंड का विधान किया। 

पाली परंपरा के अनुशार उनके अंतिम शब्द ये थे 

( All sacraments are perishable, should be performed without laziness.) इसका अर्थ है सभी संस्कार नाशवान हैं, और इन्हे बिना आलस्य के करना चाहिए।

जैन धर्म और बौद्ध धर्म में अंतर | difference between Jainism and Buddhism(history of buddhism ) 

JAINISM 
जैन धरम के अनुशार मुक्ति प्राप्त होने तक अच्छे या बुरे कर्मों के कारण पुनर्जन्म और मृत्यु का चक्र चलता रहेगा |

जैन धर्म सभी जीवों के सम्मान पर जोर देता है।

पंचव्रत लेने और त्रिरत्न के सिद्धांतों का पालन करने से पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है|
 
अहिंसा (non-violence)सत्य (truthfulness), अस्तेय(asteya),अपगृह  (non-acquisition),और  ब्रम्हचर्य (chaste living) ये सभी जैन धर्म के पंचवर्त है | 
BUDDHISM 
बौद्ध धर्म में प्रमुख मान्यताओ में से पुनर्जन्म को प्रमुख माना गया है | 

शास्त्रों में त्रिपिटक शामिल हैं

बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षा यह है कि जीवन दुख है और दुख से बचने के लिए (इच्छा का अंतिम कारण) व्यक्ति को चार आर्य सत्यों को समझने और आठ गुना पथ का अभ्यास करके अज्ञानता को दूर करने की आवश्यकता है।

वे दुख का सत्य हैं, दुख के कारण का सत्य, दुख के अंत का सत्य और दुख के अंत की ओर ले जाने वाले मार्ग का सत्य| 

बौद्ध धर्म की स्थापना आज के नेपाल में राजकुमार सिद्धर्थ जोकि, बाद में गौतम बुध के नाम से प्रचलित हुए ने की थी | 

गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद बौद्ध धर्म दो प्रमुख संप्रदायों में विभाजित है। वे महायान और थेरवाद हैं| 

भारत में बौद्ध धर्म  का विकाश | development of history of Buddhism in India 

भारत में बौद्ध धरम की बात करे तो इसे हम चन्द्रगुप्त मौर्या और अशोका के शिलालेखो द्वारा पता लगा सकते है | अशोक ने जैन धर्म और ब्राह्मणवाद जैसे गैर-बौद्ध धर्मों का भी समर्थन किया। अशोक ने स्तूपों और स्तंभों का निर्माण करके धर्म का प्रचार किया, अन्य बातों के अलावा, सभी जानवरों के जीवन का सम्मान करने और लोगों को धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित किया। उन्हें बौद्ध स्रोतों द्वारा दयालु चक्रवर्ती (पहिया मोड़ सम्राट) के मॉडल के रूप में सम्मानित किया गया है।अशोक का धम्म के प्रचार में भी बहुत बारे योगदान रहा है | यह माना जाता था कि इन अवशेषों और स्तूपों की भक्ति करने से आशीर्वाद मिल सकता है। आज के समय में हम अशोक द्वारा बनाये गए महान साँची स्तूप को मौर्यन बौद्ध स्थल के रूप में देख सकते है | 

 अशोक द्वारा दूसरी बौद्ध परिषद| Second Buddhist council 

गौतम बुद्ध के परिनिर्वाण के लगभग सौ साल बाद। जबकि दूसरी परिषद शायद एक ऐतिहासिक घटना थी| 

अशोक द्वारा तीसरी बौद्ध परिषद| Third Buddhist council 

अशोक ने 250 ईसा पूर्व के आसपास पाटलिपुत्र (आज का पटना) में बड़े मोग्गलिपुत्तिसा के साथ तीसरी बौद्ध परिषद बुलाई।

चन्द्रगुप्त मौर्या 

इनके बारे में खा जाता है की इन्होने अपने जीवन के अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म को अपना लिया था | और बौद्ध धर्म के अनुशार पूर्ण उपवास कर अपना देह त्यागा था | 

विदेशो में बौद्ध धर्म का विकाश |history of buddhism development in other countries

भारत के परोसी देशो में बौद्ध दरम का बहुत प्रचलन रहा है | परोसी देश जैसे की नेपाल , चीन अदि | धर्म विकसित हुआ क्योंकि यह भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरपूर्वी क्षेत्र north eastern से पूरे middleमध्य, east पूर्व और southern eastern asia दक्षिण पूर्व एशिया में फैल गया| 

तिब्बत में बौद्ध धर्म buddhism in Tibet 

सम्राट सोंग्त्सेन गम्पो-

सोंग्त्सेन गम्पो एक एक लिखित भासा विक्षित करना चाहता था | इसके लिए उसने अपने एक मंत्री को खोतान भेजा,| वह एक एक शक्तिशाली बौद्ध साम्राज्य था|  इसके आगे टकलामकान जिसका तुर्की भाषा में अर्थ होता है “आप अंदर जा सकते हैं किन्तु बाहर नहीं आ सकते”, का सुंदर लेकिन दुर्जेय रेगिस्तान स्थित है। आज यह इलाका चीन का शिंजियांग प्रांत है| 

तिब्बत में अनेक राजा आये और यह सभी बौद्ध ग्रंथो का ओवाद करना चाहते थे ताकि आगे आने वाली जनसंख्या उनको पढ़ सके और बौद्ध धर्म को अचे से जान सके | 

बौद्ध धर्म ग्रंथो के अनुवाद के नए युग का आरम्भ 

इस नई लहर के साथ ही कदम, शाक्य और काग्यू परम्पराओं की शुरुआत हुई| त्सोंग्खापा उग्र सुधारक थे |  त्सोंग्खापा ने बहुत ही काम उम्र में अध्ययन करना सुरु किया और यह पता लगाया की  किन-किन हिस्सों का अनुवाद त्रुटिपूर्ण ढंग से किया गया था| अशुद्धियाँ होने की बात को तर्क और विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के स्रोतों के प्रमाण की सहायता से सिद्ध करते थे। उनके अनेक शिस्यो में शामिल एक भिक्षु आगे चलकर पहले दलाई लामा बने | दलाई का मंगोल भाषा में अर्थ है – महासागर | 

Conclusion

भारत के इतिहास में बौद्ध धर्म का बहुत बारे महत्व है | बौद्ध धर्म पुरे भारत ,नेपाल, और हिमालय छेत्रो में बहुत अच्छी तरह फल फूल रहा है | परन्तु तिब्बत में बौद्ध धर्म बहुत ही कठोरता पूर्ण तरीके से प्रबंधित है | अब धीरे धीरे दलाई लामा के शिष्य देश विदेशो में बौद्ध धर्म का परशर क्र रहे है | यह धर्म दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी धर्म है | 

बौद्ध धर्म से जुड़े कुछ रोचक तथय :-

दुनिया में बौद्ध देश कितने हैं

20 से अधिक देशों

भारत में बौद्ध धर्म कितने प्रतिशत है

2011 की जनगणना के अनुशार भारत में 0.7% बौद्ध है |

बौद्ध धर्म किस कैटेगरी में आता है

बौद्ध धर्म जाती रहित है , यह मद्रास हाई कोर्ट द्वार खा गया है

बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे

बौद्ध धर्म के स्थापक गौतम बुद्ध थे |

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