Short Moral Stories in Hindi

Top 10+ Short Moral Stories in Hindi | हिंदी में नैतिक कहानियाँ

Short Moral Stories in Hindi आज हम इस लेख में “नैतिक कहानियो”, Short moral stories in Hindi के बारे में बताएगे । नैतिक कहानियां (Moral Stories) ऐसी कहानियां होती है जिसमें नैतिकता के साथ साथ उनके पीछे का संदेश हमेशा शक्तिशाली होता है और आप सभी को कुछ नई सीख भी देता है। यहाँ पर हमने इस लेख में आपके लिये कुछ ऐसी-ऐसी कहानिया चुनी है जो आपको सीख देंगी और साथ ही आपको मजेदार और रोचक भी लगेंगी जिन्हे पढ़ कर आप सभी को बहुत मजा आने वाला है। यहाँ पर लिखी हुई सारी कहानिया सभी उम्र के लोगो के लिया है, ऐसा नही हे की यह सिर्फ बच्चो को ही शिक्षित करेंगे बल्कि बड़ो को भी इन कहानियों से कुछ न कुछ सिखने को जरूर मिलेगा। यहाँ पर लिखी लगभग सारी कहानिया बिल्क़ुल नई है top 10+ moral stories in hindi. चलिए हम अपनी पहली moral stories से start करते है।

लकड़हारा और सुनहरी कुल्हड़ी की कहानी। Short moral stories in Hindi

एक समय की बात है एक जंगल के पास एक लकड़हारा रहता था वो अपने घर का ख़र्चा चलने और दो वकत की रोटी के लिए दूर दूर जंगलो में जाकर लकड़ियाँ काटता था और शाम को जाकर काटी हुई सारि लकड़ियो को बाजार में बेचता था। जिसे ही उसके घर का खर्चा चलता था। 

एक दिन वो लकड़हारा एक नदी के किनारे पेड़ काट रह था और काटते काटते तभी उसकी कुल्हड़ी गलती से हाथ से छूट कर पास के नदी में गिर जाती है। और नदी बहुत ज्यादा गहरी थी और वास्तव में बहुत तेजी से बह रही थी। उसने बहुत प्रयत्न किया अपनी कुल्हड़ी को खोजने का लकिन उसे कुल्हड़ी नहीं मिली अब उसे लगा उसने अपनी कुल्हड़ी खो दी है वो बहुत दुखी होकर नदी के किनारे बैठ कर रोने लगता है और बोलता है अब मैं कैसे लड़की काटूँगा। 

उसके रोने की आवाज को सुनकर नदी से जलपरी निकलती है और  उस लकड़हारे से पूछने लगती है क्या हुआ तुम क्यू रो रहे हो लकड़हारे ने जलपरी को पूरी बात बताता है। 

तब जलपरी बोली है मैं तुम्हारी कुछ मदद करती हु तभी जलपरी नदी में वापस जाकर एक सोने की कुल्हड़ी लेके आती है और उस लकड़हारे से पूछती है क्या ये तुम्हारी कुल्हड़ी है ? लकड़हारा साफ माना कर देता है नहीं यह मेरी कुल्हड़ी नहीं है  फिर जलपरी दुबारा नदी में जाती है और चाँदी की कुल्हड़ी लेके आती है और फिर उस लकड़हारे से पूछती है क्या ये तुम्हारी कुल्हड़ी है ? लकड़हारा फिर साफ माना कर देता है नहीं यह मेरी कुल्हड़ी नहीं है फिर से  जलपरी दुबारा नदी में जाती है और इस बार लोहे की कुल्हड़ी लेके आती है और उस लकड़हारे से पूछती है क्या ये तुम्हारी कुल्हड़ी है ? लकड़हारा मुस्कुराता है और बोलता है हाँ  हाँ ये मेरी कुल्हड़ी है। 

जलपरी लकड़हारे की ईमानदारी को देखकर बहुत खुश होती है और बोलती है ये मेरी तरफ से तीनों कुल्हड़ी तुम्हारे लिए है।  इसे मेरी एक छोटी सी भेंट समझ के रख लो और चली जाती है।

Moral of The story इस कहानी से क्या सिख मिलती है।

इस कहानी से ये सीख मिलती है की ईमानदारी से ही सब कुछ जीता जा सकता है अगर लकड़हारा लालच करता तो बोलता सोने की कुल्हड़ी उसकी है तो जलपरी सब जानती थी वो न ही उसे लोहे की कुल्हड़ी देती और न ही सोने और चाँदी की। इसलिए हमेशा ईमानदार बने।

50 का नोट। Short moral stories in Hindi

50 का नोट। Short moral stories in Hindi

एक बार इक व्यक्ति रात को अपने ऑफिस से घर की और लोट रहा था उसे ऑफिस से घर लौटने में देर हो गई थी घर आते ही उनसे देखा की उसका बेटा अभी तक सोया नही था जॉकी सिर्फ 5 वर्ष का था। आने पिता को घर में देख वह बोहोत खुश हो गया और उसने अपने पिता से पूछ की आप एक घंटे में कितने रूपए कमाते हो अपने बेटे की यह बात सुनकर उस व्यक्ति को कुछ समाज नही आया और उसने अपने बेटे को जवाब देते हुए कहा की में एक घंटे का 100 रुपय कमाता हु, अपने पिता की यह बात सुनकर उसके अपने पिता से कहा की क्या आप मुझे 50 रुपय दे सकते हो, उस व्यक्ति को गुस्सा आगया उसने सोचा की उसका बेटा इसी लिया उस्से पूछ रहा था एक वह एक घंटे में कितने रुपय कमाता है, उसने चिल्लाते हुआ अपने बेटे से कहा की में तुम्हे 50 रुपय नही दूंगा तुम मेरी महनत की कमाई को बेकार के खिलोनो में खर्च करना चाहते हो, यह सुनकर उसका बेटा रोने लगा और अपन कमरे में चला गया।

कुछ देर बाद जब उस व्यक्ति का गुस्सा शांत हुआ तो उसने सोचा की उसका बेटा कभी उस्से ऐसे बना बात के पैसे नही मांगता तो क्या पता हुस्से सच में पैसो की जरुरत हो, फिर वह उठ कर अपने बेटे के कमरे में चला गया उसने अपने बेटे से कहा की मुझे माफ़ कर देना मने अपना दिनभर का गुस्सा तुम्हारे उपर निकाल दिया फिर उसने अपने हाथ में 50 का नोट लिया और अपना हाथ अपने बेटे की और बढ़ा दिया।

अपने पिता को अपनी और 50 का नोट बढ़ाते हुए देख उसका बेटा बोहोत खुस हो होगया और अपने पिता से 50 का नोट लेने के बाद वह सीधा अपनी अलमारी की और भागा और उसमे से कुछ सिक्के निकाल कर उन्हें गिनने लगा। यह देख कर उस व्यक्ती को फिरसे गुस्सा आगया उसने अपने बेटे से पूछ की तुम्हारे प्याज जब पहले से पैसे थे तो तुमने मुझसे और क्यों मांगे, तो अपने पोता की यह बात सुनकर वो बोलै की पहले या पुरे नही थे लेकिन अब यह पुरे है। इतना कहते हुए उसने वह 100 रुपय अपने पिता के हाथ में रख दिए और बोला अपने कहा था ना की आप एक घंटे में 100 रुपय कमाते हो तो ये 100 रुपय है मुझे आपका 1 घंटा खरीदना है आप कल एक घंटा पहले घर आजाना मुझे अपने साथ बैठ कर खाना-खाना है और आपके साथ समय बिताना है।

शिक्षा (Moral of The Story)

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हे की इस तेज रफ़्तार जिंदगी में हम उन लोगो के लिया समय ही नही निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा महत्त्व रखते है इसलिया हमें ध्यान रखना होगा की इस व्यस्त जिदगी में भी हमें अपने माँ बाप, जीवन-साथी, बच्चो, और अन्य महत्वपूर्ण लोगो के लिया समय निकाले, ताकि हमें एक दिन यह अहसास ना हो की हमने छोटे-मोटी चीजे पाने के लिये बोहोत कुछ बड़ा खो दिया।

बुद्धिमान भालू | Short moral stories in Hindi

बुद्धिमान भालू | Short moral stories in Hindi

एक बार की बात है एक जंगल था उसमे बोहोत सारे जानवर रहते थे उसी जंगल में एक शेर भी रहता था वह थोड़ा बूढ़ा था एक बार जंगल में शिकार करते हुआ उसका एक नुकीला दांत टूट गया। उसका दांत टूटने के बाद वह बड़े जानवरो का शिकार करने में असमर्थ था, वह जंगल में किसी छोटे जानवर को तलाश कर उसका शिकार करने की योजना बना रहा था। लेकिन 1-2 दिन तक भी वह किसी छोटे जानवर का शिकार करके अपना पेट भरने में आसमारत रहा वह भूख की वजह से मरा जा रहा था। उसी समय जंगल में शिकार की तलाश में घूमते हुआ उसने एक गुफा देखी वह उस गुफा को देख कर खुश हो गया, लेकिन जब वह गुफा के अंदर गुसा तो वह यह देख कर निराश हो गया की गुफा के अंदर कोई नही था। उसने गुफा की हालत देख कर यह अंदाजा लगा लिया की गुफा में कोई न गई छोटा जानवर तो जरूर ही रहता है और वो शाम तक घूम फिर के इस गुफा में जरूर लौटेगा, शेर ने योजना बनाई की वह इसी गुफा में छुपकर बैठा रहेगा जबतक की इस गुफा में रहने वाला जानवर नही आजाता और जैसे ही इस गुफा में रहने वाला जानवर यहाँ आएगा तो अचानक हमला करके उसको मार दुंगा। उसे अपनी योजना पर पूरा भरोसा था, और वह पहले ही 2-3 दिनों से भूका था इसलीये शिकार की तलाश में कही बाहर नहीं जा सकता था तो उसे यही सबसे बहतर उपाय लगा।

वो गुफा जिसमे शेर छुपाहुआ था एक भालू की थी उस गुफा में वो भालू अपने बीवी बच्चो के साथ रहता था वह खाने की तलाश में अपने  बीवी बच्चो के साथ गुफा के बहार आया हुआ था, जैसी ही वह शाम मो अपने परिवार के साथ गुफा की और लोट रहा था तो उसने देखा की उसकी गुफा के बाहर शेर के पंजो के निशान थे लेकिन वह सिर्फ शेर के अंदर जाने के निशान थे बाहर आने की नही थे भालू बुद्धिमान था उसे पता चल गया की शेयर गुफा के अंदर छुप कर बैठा है। लेकिन उसे इस बात का पता लगाना था क्या सही में गुफा में शेर मौजूद है की नही, उसने एक योजना बनाई और गुफा के बाहर खड़ा होकर जोर से बोला क्या में अंदर आसक्ता हूँ, उसकी  यह बात सुनकर शेर को कुछ समाज नही आया की वो उस गुफा से अंदर आने के लिये क्यों पूछ करा है। फिर कुछ देर बाद भालू बोला आज तुम मुझे अंदर आने को क्यों नही कह रही हो वैसे तो जब भी में कहता था क्या में अंदर आसक्त हु तब तुम कहती थी आजाओ तो आज कोई जवाब क्यों नही दे रही हो, फिर भालू ने गुफा से कहा अगर तुम मुझे अंदर आने को नही कहोगे तो में अंदर नही आऊंगा।

यह सुनकर शेर का दिमाग खराब हो गया वो पुरे दिन इंतजार करने के बाद अब ये नही चाहता था की उसका शिकार उसके हाथ से यू निकल जाए, उसे ये भी नही पता था की ये गुफा बोलती है या नही, उसे यह लगा की अगर यह गुफा बोलते है तो उसके अंदर होने की वजह से नही बोल रही है। फिर बाहर से भालू ने फिरसे आवाज लगाई क्या में अंदर आसक्त हु और भालू ने यह भी बोला अगर इस बार गुफा कोई जवाब नहर देंगे तो में अंदर नही जाऊंगा। इतना सुनते ही अंदर बैठा शेर अपनी आवाज मोटी करते हुए बोला “आजाओ” वह नही चाहता था की उसका शिकार उसके हाथ से निकल जाए। गुफा के अंदर से शेर को आवाज लगाते सुनकर भालू हसने लगजाता है और अपने परिवार को लेकर दुसरी किसी सुरक्षित जगह चले जाता है।

शिक्षा (Moral of The Story)

हमे इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है की हमें अपने जीवन में हमेशा सावधान और  सतर्क रहना चाहिए क्योकी हमें नही पता कब कोनसे मोड़ पर कोनसी मुसीबत हमारा इंतजार कर रही है, और हमेशा आगे की सोच कर चलना चाहिये।

अहंकार | Short moral stories in Hindi

अहंकार | Short moral stories in Hindi

बोहोत पहले की बात हे एक गाँव में एक मूर्तिकार रहता था। वह ऐसी मूर्तिया बनता था जिनको देख कर हर किसी को वह मुर्तिया जीवित जैसी लगती थी। आसपास के सभी गाँवो में उसको बोहोत बड़ा मूर्तिकार माना जाता था लोग उसकी मुर्तीयो के दीवाने थे। इसलिये उस मूर्तिकार को अपनी कला पर बोहोत घमंड था।

एक दिन उसको ऐसा लगा की वह जल्द ही मरने वाला है, तो उसने यम-दूतो को भ्रमित करने के लिए एक योजना बनाई उसने अपने जैसी हूबहू 20 मुर्तिया बना ली और खुद उन मूर्तियों के बीच जाकर बैठ गया और जब यम-दूत उसे लेने आए तो वह खुद भ्रमित हो गई की इन 21 मूर्तियों में से असली मनुष्य कोन है, वह सोचकने लगे अब क्या किया जाए अगर मूर्तिकार को छोड़ दिया तो संसार का नियम टूट जाएगा और उन मूर्तियों को तोड़ते है तो वो कला का अपमान होता। तभी एक यमदूत को मानव स्वभाव के सबसे बड़े अवडुं “अहंकार” को परखने का विचार आया, फिर यम-दूत ने कहा यह सब मुर्तिया कितनी अच्छे है लेकिन इन सब में एक कमी है अगर इनको बनाने वाला मेरे सामने होता तो में उसे यह बताता की इन मूर्तियों में क्या कमी है।

यमदूत की यह बात सुनकर मूर्तिकार ने सोचा मेने अपनी पूरी जिंदगी मूर्ति बनाने में लगा दी मुझसे कोई गलती हो ही नहीं सकती, उसे अहंकार था की वह कोई गलती नहीं कर सकता तभी वह उन मूर्तियों की बीच से निकला और बोला “क्या गलती है इन मूर्तियों में “उसके बोलते ही यमदूतो ने उसे पकड़ लिया और बोलै की बस यही गलती करगए तुम अपने अहंकार में बेजान मुर्तिया कभी बोला नही करती”।

शिक्षा (Moral of The Story)

हमें इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है की इतिहास गवाह है अहंकार ने इंसान को परेशानी और दुख के शिव कुछ नहीं दिया।

नकल करना बुरी बात है | Short moral stories in Hindi

नकल करना बुरी बात है | Short moral stories in Hindi

एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था। पहाड़ की के निचे नदी के पास बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। वह बड़ा चालाक और बईमान था। उसकी कोशिश सदा यही रहती थी कि बिना मेहनत किए खाने को मिल जाए। पेड़ के आसपास सुरंगो में खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकदम खरगोश को उठाकर ले जाते। एक दिन कौए ने सोचा, ‘वैसे तो ये चालाक खरगोश मेरे हाथ आएंगे नहीं, अगर इनका नर्म मांस खाना है तो मुझे भी बाज की तरह करना होगा में भी इसे एकदम झपट्टा मारकर पकड़ लूंगा।

दूसरे दिन कौए ने भी एक खरगोश को दबोचने की बात सोचकर ऊंची उड़ान भरी। फिर उसने खरगोश को पकड़ने के लिए बाज की तरह जोर से झपट्टा मारने की कोशिश की, अब बेचारा कौआ बाज का क्या मुकाबला करता। खरगोश ने उसे देख लिया और झट वहां से भागकर एक बड़े पत्थर के पीछे छिप गया। कौआ अपनी तेज रफ़्तार की वजह से उस पत्थर से जा टकराया। नतीजा, उसकी चोंच और गरदन टूट गईं और उसने वहीं तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया।

शिक्षा (Moral of The Story)

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की नकल करने के लिए भी अकल चाहिए।

शेर और सियार | Short moral stories in Hindi

शेर और सियार | Short moral stories in Hindi

सालो पहले हिमालय की किसी गुफा में एक ताकतवर शेर रहा करता था। एक दिन वह एक भैंसे का शिकार और उसे खा कर कर अपनी गुफा को लौट रहा था। तभी रास्ते में उसे एक मरियल-सा सियार मिला जिसने उसे लेटकर अपनासिर झुकाकर प्रणाम किया। जब शेर ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो उसने कहा, “सरकार मैं आपका सेवक बनना चाहता हूँ। कुपया मुझे आप अपनी शरण में ले लें। मैं आपकी सेवा करुँगा और आपके द्वारा छोड़े गये शिकार से अपना गुजारा कर लूंगा।” शेर ने उसकी बात मान ली और उसे अपनी शरण में रखा लिया।

कुछ ही दिनों में शेर के छोड़े हुए शिकार को खा-खा कर सियार बोहोत मोटा हो गया। हर दिन  शेर के शिकार करने को देख-देख उसने खुद को भी शेर जैसा मान लिया। एक दिन उसने शेर से कहा, “अरे शेर! मैं भी अब तुम्हारी तरह शक्तिशाली हो गया हूँ। आज मैं एक हाथी का शिकार करुँगा और उसे खाऊंगा और उसके बचे-कूचे माँस को तुम्हारे लिए छोड़ दूँगा। क्योकी शेर ने उसे अपने दोस्त की तरह माना था, इसलिए उसने उसकी बातों का बुरा नहीं मान उसे ऐसा करने से रोका। भ्रम-जाल में फँसा वह जिद्दी सियार शेर के मानाने पर भी नहीं माना और पहाड़ की चोटी पर जा खड़ा हुआ। वहाँ से उसने चारों और नज़रें दौड़ाई और पहाड़ के नीचे हाथियों के एक छोटे से समूह को देखा। फिर वह शेर की तरह तीन बार सियार की आवाज निकाल कर एक बड़े हाथी के ऊपर कूद पड़ा। लेकिन हाथी के सिर के ऊपर कूदने की बजाए वह उसके पैरों में जा गिरा। और हाथी अपनी मस्तानी चाल में चल रहा था अपना अगला पैर उसके सिर के ऊपर रख आगे बढ़ गया। कुछ ही क्षणों में सियार का सर चकनाचूर हो गया और उसकी मोत हो गई। पहाड़ के ऊपर से सियार की सारी हरकतें देखता हुए शेर ने कहा – ” होते हैं जो मूर्ख और घमण्डी होती है उनकी ऐसी ही गति।”

शिक्षा (Moral of The Story) 

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हमें कभी भी जिंदगी में किसी भी समय घमण्ड नहीं करना चाहिए और अपने पास जो कुछ भी है उसी में खुश रहना कहिये।

सांड और गीदड | Short moral stories in Hindi

सांड और गीदड | Short moral stories in Hindi

एक किसान के पास एक बिगडैल सांड था। उसने कई जानवरो को सींग मारकर घायल कर दिए था । आखिर तंग आकर किसान ने उस सांड को जंगल की ओर भगा दिया। सांड जिस ही जंगल में पहुंचा उसने देखा, वहां बोहोत सारी हरी घास उगी थी। आजाद होने के बाद सांड के पास दो ही काम रह गए थे खूब खाना, हुंकारना और पेडों के तनों में सींग फंसाकर जोर लगाना। जंगल में आने के बाद सांड पहले से भी अधिक मोटा हो गया। उसके सारे शरीर में से ऐसी मांसपेशियां उभरी जैसे चमडी से बाहर निकल पडेंगी। पीठ पर कंधो के ऊपर की गांठ बढती-बढती धोबी के कपडों के गट्ठर जितनी बडी हो गई। गले में चमड़ी कई तह में लटकने लगीं।

उसी वन में एक गीदड-गीदडी का जोडा रहता था, जो बडे जानवरों द्वारा छोडे शिकार को खाकर गुजारा करते थे। अपने आप वह बस जंगली चूहों आदि का ही शिकार कर पाते थे। संयोग से एक दिन वह मन की करने वाला सांड घूमते हुआ उधर ही आगया जिदर गीदड-गीदडी रहते थे। गीदडी ने उस सांड को देखा तो उसकी आंखे फटी की फटी रह गईं। उसने आवाज देकर गीदड को बाहर बुलाया और बोली “देखो तो इसकी मांस-पेशियां। इसका मांस खाने में कितना स्वादिष्ट होगा। आह, भगवान ने हमारे लिए क्या स्वादिष्ट तोहफा भेजा हैं।

गीदड ने गीदडी को समझाया “सपने देखना छोडो। उसका मांस कितना ही अच्छा और स्वादिस्ट हो, हमें क्या लेना।” गीदडी भडक उठी “तुम तो गधे हो। देखते नहीं उसकी पीठ पर जो चर्बी की गांठ हैं, वह किसी भी समय निचे  गिर जाएगी। हमें बस उठाना ही होगा और इसके गले से जो मांस की तहें नीचे लटक रही हैं, वे कभी भी टूटकर नीचे गिर सकती हैं। हमें बस इसके पीछे-पीछे चलते रहना होगा।

”गीदड ने उसे समजते हुआ बोला “भाग्यवान! यह लालच छोडो।” गीदडी जिद करने लगी “तुम हाथ में आया मौका अपनी कायरता से छुड़वाना चाहते हो। तुम्हें मेरे साथ चलना होगा। मैं अकेली कितना ही खा पाऊंगी?” गीदडी की जिद के सामने गीदड की एक न चली। दोनों ने सांड के पीछे-पीछे चलना शुरु किया। सांड के पीछे चलते-चल्ते उन्हें कई दिन हो गए, पर सांड के शरीएर से कुछ नहीं गिरा। गीदड ने बार-बार गीदडी को समझाने की कोशिश की “गीदडी! घर चलते हैं एक-दो चूहे मारकर पेट भर लेते हैं। लेकिन गीदडी की अक्ल पर तो पर्दा पड गया था। वह न मानी “नहीं, हम खाएंगे तो इसी का मोटा-तजा स्वादिष्ट मांस ही। यह कभी न कभी तो यह जरूर ही गिरेगा। और दोनों भूखे- प्यासे सांड के पीछे लगे रहे। सांड की चर्बी तो गिरी नहीं लेकिन लगातार  भूखे-प्यासे सांड का पीछा करते-करते एक दिन दोनों खुद गिर पड़े और फिर कभी न उठ सके। 

शिक्षा (Moral of The Story)

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की अधिक लालच करने का फल हमेशा बुरा ही होता हैं।

पछतावा | Short moral stories in Hindi

पछतावा | Short moral stories in Hindi

एक मेहनती और ईमादार नौजवान बहुत पैसे कमाना चाहता था क्योकी वह गरीब था और गरीबी में जी रहा था। उसका सपना था कि वह मेहनत करके खूब पैसे कमाये और एक दिन अपने पैसे से एक कार खरीदेगा। जब भी वह कोई कार देखता तो उसे अपनी कार खरीदने का मन करता।

कुछ साल बाद उसकी अच्छी नौकरी लग गयी और कुछ ही सालो में वह एक बेटे का पिता भी बन गया। सब कुछ अच्छा चल रहा था मगर फिर भी उसे एक दुख सताता था की उसके पास उसकी अपनी कार नहीं थी। फिर धीरे-धीरे उसने पैसे जोड़ना शुरू कर दिया और फिर पैसे जोड़ कर एक कार खरीद ली। कार खरीदने का उसका सपना पूरा हो चूका था और इससे वह बहुत खुश था। वह कार की बहुत अच्छी तरह देखभाल करता था और उसमे शान से घूमता था।

एक दिन जब रविवार को वह अपनी कार को रगड़-रगड़ कर धो रहा था। यहां तक कि गाड़ी के टायरों को भी चमका रहा था। उसका 5 साल का बेटा भी पिता के आगे पीछे घूम-घूम कर कार को साफ होते देख रहा था। कार धोते धोते उस आदमी ने देखा कि उसका बेटा कार के बोनट पर किसी चीज़ से खुरच-खुरच कर कुछ लिख रहा है।

यह देखते ही उसे बहुत गुस्सा आया। उसने अपने बेटे को इतना पीटा की उसने अपने बेटे के हाथ की एक  उंगली ही तोड़ दी।

वो आदमी अपनी कार को बहुत चाहता था और वह अपने बेटे की इस शरारत को बर्दाश नही कर सका। जब  बाद में उसका गुस्सा कम हुआ तो उसने सोचा कि जा कर देखता हूँ की कार में कितनी खरोच लगी है। जब बाद में उसने अपनी कार के पास जाकर देखा तो उसका होश उड़ गये। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वह फुट-फुट क्र रोने लगा। कार पर उसके बेटे ने खुरच कर लिखा था :- 

Papa, I Love You.

शिक्षा (Moral of The Story)

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि किसी के बारे में कोई गलत राय रखने से पहले या गलत फैसला लेने से पहले हमेसा यह जरूर सोच लेना की उस व्यक्ति ने वह काम किस नीयत से किया है।

गधे की परछाई | Short moral stories in Hindi

गधे की परछाई | Short moral stories in Hindi

गर्मियों के दिन थे। तेज धुप में एक यात्री को एक गॉंव से दूसरे गॉंव जाना था। दोनों गॉंव के बीच एक ऐसा मैदान था जहा कोई नही रहता था, यात्री ने किराए पर एक गधा ले लिया। लेकिन वह गधा अलसी था। वह चलते चलते बार बार रुक जाता था इस्लिये गधे का मालिक उसके पीछे पीछे चल रहा था। जब गधा रुकता तो वह उसे डंडा मरता फिर गधा फिर चलने लग जाता था। चलते चलते दोपर हो गई, आराम करने के लिये वो रस्ते में रुक गए वहा आसपास कोई पेड़ नही था जिसकी छाया में वह बैठ सके। इस्लिये यात्री गधे की परछाई में बैठ गया।

गर्मी के कारण गधे का मालिक बोहोत थक गया था, वह भी यात्री के साथ गधे की परछाई में बैठना चाहता था। इस्लिये उसने यात्री से कहा, “देखो भाई यह गधा मेरा है। इस्लिये इस गधे की परछाई मेरी है। तुमने बस गधे को कराये पर लिया है उसकी परछाई पर हमारा कोई सौदा नही हुआ था, इस्लिये मुझे गधे की परछाई में बैठने दो।”

गधे के मालिक की यह बात सुनकर यात्री ने कहा “मैंने पुरे दिन के लिए गधे को कराए पर लिया है। इस्लिये पुरे दिन गधे की परछाई को उपयोग करने का भी अधिकार मेरा ही है। तुम गधे से उसकी परछाई को अलग नहीं कर सकते दोनों आपस में छागड़ने लगे फिर उनमें मारपीट शुरू हो गई। उन दोनों को गधो की तरह लड़ता देख वह गधा वहा से भाग गया वह अपने साथ अपनी परछाई भी ले गया।

शिक्षा (Moral of The Story)

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हमें छोटे छोटे बातो पे लड़ना नही कहिया क्योकी छोटी छोटी बातो पर लड़ना अच्छा नही होता।

बदसूरत ऊँट | Short moral stories in Hindi

बदसूरत ऊँट| Short moral stories in Hindi

एक ऊँट था उसको दुसरो की बजती करने की बुरी आदत थी, वह हमेशा दूसरे जानवरो चिडियो की शकल-सूरत का मजाक उड़ता तहत था। उसके मुँह से कभी किसी जानवर की तारीफ नही निकलती थी।

गाय से वह कहता जरा पानी शकल तो देखो कितनी बदसूरत हो तुम हड्डियों का ढाँचा मात्र है तुम्हारा शरीर। लगता है तुम्हारे हड्डिया खाल फाड़कर किसी भी समय बाहर निकल आएँगी।

भैंस से वो कहता, तुमने तो विधाता के साथ जरूर कोई शैतानी की होगी तभी तो उसने तुझे काली-कलूटी बनाया है। तुम्हारे टेढ़े -मेढ़े सींग तुम्हे और भी बदसूरत बना देते है।

हाथी को चिढ़ाते हए कहता है “तुम तो सभी जानवरो में कार्टून जैसे दिखते हो, भगवन ने तुम्हे मजाक करते करते बनाया है। तुम्हारे शरीर के अंगो में किसी प्रकार का संतुलन नहीं है। तुम्हारा शरीर विशाल है और पूँछ कितनी छोटी तुम्हारी आंखे कितनी छोटी है और कान कितने बड़े है। तुम्हारी सूंड़ पैर और शरीर के अन्य अंगो के बारे में तो में बीएस चुप ही रहूँ, यही ठीक रहेगा।”

तोते से वह हस्ते हुआ कहता है, “तुम्हारी टेडी और लाल रंग की चोंच बनाकर भगवन ने वाकई तुम्हारे साथ मजाक किया है।”

इसी तरह ऊँट हमेशा हर जानवर का मजाक उड़ाता रहता था।

एक बार ऊँट की मुलाकात एक लोमड़ी से हो गई। वह बोहोत ज्यादा बोलती थी और किसी को भी खरी बात सुनाने से नही हिचकती थी। ऊँट उसके बारे में कुछ भी उल्टा सीधा बोलना शुरू करे इसके पहले ही लोमड़ी ने कहा, “अरे ऊँट तू लोगो के बारे में उलटी-सीधी बाटे करने की अपनी गंदी आदत छोड़ दे। जरा अपनी शकल-सूरत तो देख। तुम्हारा लंबा चेहरा, पत्थर जैसी तुम्हारी आँखे, पीले-पीले गंदे दाँत, टेढ़े-मेढे भद्दे पैर और तुम्हारी पीठ पर यह भद्दा सा कूबड़। सभी जानवरो में सबसे बदसूरत तो तू हे है। दूसरे जनरो में तो एक -दो कमीया है, पर तुम में बस कमिया हे कमिया है।”

लोमड़ी की खरी-खोटी बात सुनकर ऊँट का सिर शर्म से झुक गया। वह चुपचाप वहा से निकल गया। 

शिक्षा (Moral of The Story)

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कीदुसरो में कमिया ढूंढ़ने से पहले अपनी कमियों पर नजर डाललेनी चाहिये।

बोले हुए शब्द वापस नहीं आते । Short moral stories in Hindi

बोले हुए शब्द वापस नहीं आते । Short moral stories in Hindi

एक बार एक किसान ने अपने पसोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा। संत ने किसान से कहा, “तुम खूब सरे पंख इकट्ठा कर लो और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो। “किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया। तब संत ने कहा, “अब जाओ और उन पंखो को इकट्ठा क्र के वापस ले आओ।

किसान वापस गया पर जब तक सारे पंख वह से इधर-उधर उड़ चुके थे, और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा, तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दो के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हे अपने मुख से निकल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते।

शिक्षा (Moral of The Story)

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हमें कभी भी किसी को बिना सोचे समझे और गुस्से में भला बुरा नहीं बोलना चाहिए क्योकी बोले हुए शब्द वापस नही आते।

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