Sita Haran

सीता हरण की कहानी | Sita haran in ramayan story in hindi

Ramayan and sita haran रामायण और सीता हरण 

सीता हरण की कथा जानने से पहले यह सबसे ज्यादा जरुरी है की हम , रामायण के बारे जान ले | हिन्दू सभ्यता में बहुत समय पूरब करीब 4वि से 7वि िश्वि पूरब दो महाकाव्यों की रचना की गयी थी | रामायण और महाभारत, यह दोनों ही महाकाव्य अपनी अलग छबि रखते है , और भारत वाषियो को इन् काव्यों से बहुत सी शिक्षा प्रदान होती  है | हम रामायण की बात करे तो यह रचना महर्षि बाल्मीकि द्वारा लिखी गयी एक महानतम काव्य रचनाओं में से एक है | रामायण के के पहले कवी वाल्मीकि को मन जाता है | इनके बाद आने वाले युगो में रामायण को और कवियों द्वारा रचना रचा गया है | सीता हरण रामायण की कथा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है | सीता हरण sita haran  कथा के आगे देखे तो किसिसकिंधा कांड , जटायु मिर्त्यु ,राम सेतु, लंका दहन, आदि जैसे बहुत से रोचक कंडो के बारे जानकारी मिलती है | साथ ही रामायण परिवाररिक जीवन और भाई चारे के सही सद्गुणों को समझता है | राज्य और जमीं , धन अदि से ऊपर परिवार कैसे होता है उसके बारे में भी ज्ञान देता है | रामायण संस्कृत में लिखा एक महा काव्य है , जिसका अर्थ है राम की कथा | आगे जानेगे राम की बाल कथा , शिक्षा, अयोध्या राज्य और सीता विवाह 14 वर्षो का वनवास, कीचक मृत्यु और रावण द्वारा सीता हरण |

आदि-कवि बाल्मीकि और पहली काव्य रचना रामायण 

वाल्मीक का जन्म का नाम अग्नि शर्मा के नाम से हुआ था जो की ब्राह्मण कुल से थे इनका गोत्र भृगु था | एक समय वाल्मीकि एक झील पे अपने एक शिष्य के साथ स्नान करने गए | वहा उन्होंने १ उनशो के जोड़े को देखा जोकी बहुत प्रेम से थे | वृशि वाल्मीकि उस जोड़े को निहार ही रहे थे की एक तीर अचानक से आकर मादा हैश के शरीर के आर पार हो गया और वह हंस उस समय मर गया , तथा मादा हंस उसके बिलाप में रट हुए मर गयी | क्रोधित हो वाल्मीकि जी के मुख से से कुछ श्लोक निकले जोकी ुष शिकारी के लिए थे जिसने हंशो को मारा था | 

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।

यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्॥’

यह श्लोक संस्कृत साहित्य के पहले श्लोक बने | और उसके वाल्मीकि ने रामायण महाग्रंथ की रचन संस्कृत भाषा में की | यह दुनिया की सबसे पहली और प्राचीनतम काव्य रचना थी|  

अयोध्या और दशरथ नंदन (बालकाण्ड)

अयोध्या नगरी जो आज के अत्तार प्रदेश में स्तिथ एक बहुत विशाल राज्य था जिसके राजा , राजा दशरथ थे | वह एक चक्रवाती सम्राट थे , उनकी तीन रानिया कुशलया, कैकयी,और सुमित्रा थी | विवाह के कई वर्षो पश्चात राजा दसरथ के घर चार पुत्र हुए | कौशल्या के पुत्र राम , कैकयी के पुत्र भरत , और सुमित्रा के पुत्र लक्षमण और शत्रुघन | ये चारो बालक बहुत ही प्यारे और मनोभावन थे | राम चारो भाईओ में सबसे बड़े थे |दशरथ के सबसे प्रिये पुत्र राम थे| चोरो भाइयो को शिक्षा की बात करे तो , उस समय काल में गुरुकुल प्रशिद्ध थे और राजा घराने के अलग राज गुरु हुआ करते थे | चारो भाई ऋषि वशिस्ट के पास शिक्षा दीक्षा प्राप्त करने गए | वहा उन्होंने धनुर विद्या , ज्योतिषी,खगोल विद्या , अश्त्र-शस्त्र की विद्या प्राप्त की| 

राम और जनक नंदनी सीता का विवाह/marraige of sita and ram  

जब वह सब अयोध्या वापिस आये तब सभी ने उनका बहुत ही प्रश्नता के साथ अभिवादन किया | कुछ समय बाद ऋषि विश्वामित्र अयोध्या पधारे और उन्होंने दशरथ से राम और लक्षमण को अपने साथ ले अजाने के लिए कहा | उस वक्त आश्रम में राक्षसों का बहुत ज्यादा कुरुरता फैली हुई थे , उन्होंने बताया की राक्षसी सकतिया ऋषियों के यग, पूजा अर्चना में बिघ्ना डालती है| आश्रम के ऋषिगण बहुत परेशान है, और उनकी सहायता हेतु राम और लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ भेजा जाये | आश्रम जाते समय राम की भेट एक राक्षसी से हुई जो की तारक वन में रहती थी, तथा उसका नाम तारका था | राम ने तारका वध किया , आगे बढ़ने पर उन्हें अहिल्या उधार , राक्षसों से यग की रक्षा जैसे कार्य किये | आगे बढ़ने पर वह सभी मिथिला जा पहुंचे, जो की आज के समय बिहार में है | वह वह सभी राजा जनक के राजमहल पहुंचे झा सीता स्वयंवर की तयारिया चल रही थी | सीता सयंवर की कुछ सरते थी , जो कोई राजा ,महाराजा, या राजकुमार शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा उसके साथ सीता का विवाह होगा | अंत में राम ने सीता से विवाह किया | राजा जनक के महल में उनकी ४ पुत्रिया थी, उन सभी का व्याह चारो दसरथ नंदन से करवाया गया | 

राम सीता और लक्ष्मण का 14 वर्षो का वनवास /Exile of 14 years  

राम के विवाह के उपरांत यह घोषणा की गयी की राम अयोध्या राज्य के उत्तराधिकारी होंगे और राजा दशरथ के बाद राजा दसरथ का राजयविषेक किया जायेगा | इस सुचना से सभी बहुत प्रसन थे| रानी कैकई जो की राजा दशरथ की पत्नी थी उनहोने अपनी दासी सुमंत्रा जोकि कैकयी के माईके से उनके विवाह में कैकयी के साथ आयी थी | राजा दसरथ से एक वचन के रूपर में राम का 14 वषो का वनवास मांग लिया | और भरत का राज्य अभिषेक करने की भी मांग की | राम ने माँ की आज्ञा का मान रखने और पिता दसरथ के वचन का मांग रखने क लिए वनवास स्वीकार किया | सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास के लिए प्रस्थान किया | कुछ समय बाद राम के वियोग और एक श्राप के कारण राजा दशरथ की  मृत्यु हो गयी |  

सीता हरण/ पंचवटी की कुटिया sita haran in ramayan in hindi 

जब सीता, राम और लक्षमण वनवास के लिए वन में जा रहे थे तो वे सभी एक  आश्रम में पहुंचे जहा उन्होंने ऋषियों और ऋषि माताओं की देखभाल की | तभी एक गुरु माता ने सीता को कुछ वशर्ते और आभूषण दिए | जिनकी योग्यता विशेष थी, वह वस्त्र और आभूषण कभी न मैले होने वाले थे | इन् वस्त्रो को  माता सीता ने पुरे वंवाशकाल के दौरान धारण किये हुए थे | आगे चलने पर वह तीनो पंचवटी नाम के स्थान पर पहुंचे , वह स्थान बहुत ही रमणीय था, वह गोदावरी नदी के किनारे था | तभी उन्होंने निस्चय किया की वह सभी अपना वनवास कल पंचवटी में व्यतीत करेंगे | तथा उन्होंने एक कुटिया बनाई और वही रहने लगे | 

शूपणखा, मारीच का श्वर्ण  मिर्ग रूप और रावण  द्वारा सीता हरण sita haran in ramayan  

सूपनखा 

यह एक राक्षसी कुल से थी | शूपणखा रावण नाम के एक राकेश की बहन थी| जोकि उस समय वन में विचरण कर रही थी |  विचरण करते करते उसने राम और लक्ष्मण को अपनी कुटिया में ध्यान करते देखा |  वह उनकी छबि से मोहित हो गयी और एक सुन्दर युक्ति के रूप में राम लक्ष्मण की कुटिया में जा पहुंची और उनको मोहित करने की कोसिस करने लगी | तब राम ने उसे समझने की कोसिस की वह एक विवाहित पुरुष है और उनकी सीता नाम की एक पत्नी है | परन्तु बहुत समझने पर जब वह नहीं मानी टी लक्ष्मण ने क्रोधित होकर उसकी नाक काट दी | इस अपमान से क्रोधित हो शूपणखा अपने भाई रावण ravan  के पास जा पहुंची और उससे अपने अपमान का बदला लेने के लिए कहा | 

मारीच का श्वर्ण मिर्ग रूप/ और सीता हरण sita haran in ramayan and Marich as a golden stage  

सीता हरण के लिए रावण ने मारीच नाम के एक राक्षस की मदद ली | जिसे सवर्ण हिरन बनने का वरदान प्राप्त था | रावण ने उससे खा की तुम हिरण रूप में पनवती कुटिया के पास जाना और विचरण करना | जब सीता इतने सुन्दर हिरन कोड देखेगी तो उसको राम और लक्षमण से लेन के लिए जरूर कहेगी और जब ये दोनों तुम्हारे पीछे आएंगे तब में साधु रूप में सीता के पास जायूँगा और उसका हरण कर लंका ले आऊंगा | मारीच ने रावण के कहे अनुशार एक बहुत सुन्दर स्वर्ण हिरण का रूप लिया और पंचवटी कुटिया के बाहर विचरण करने लगा ,तभी माता सीता ने उसे देखा और श्री राम से उसकी मांग करने लगी | जब राम हिरन के पास जाने लगे तब वह हिरन वन की भागने लगा और राम उसे पकर्ने के लिए उसकेपीछे जाने लगे | दोनों भागते भागते बहुत दूर निकल गए , और सैम भी होने वाली थी | सीता उनकी प्रतीक्षा कर रही थी | जब वह बहुत दूर पहुंच गए और राम ने देखा की हिरन अब मूर्छित कर पकड़ा जा सकता है तो उन्होंने बाण चलाया और हिरन मूर्छित हो गया | बाण लगते ही वह राक्षस जोकि हिरन के रूप में था अपने वास्त्विक रूप में आ गया और राम की आवाज में पिरापूर्ण आवाज में लक्ष्मण और सीता को पुकारने लगा | इस आवाज को सुनकर सीता बहुत दर गयी और लक्षमण को अपनी सुगंध देकर राम की सहायता के लिए भेज दिया | जाने से पहले लक्षमण ने कुटिया के बाहर सीता के लिए अपने शक्तियो से एक रेखा का निर्माण किया जिसे भीतर आने का प्रयास करने पर वह व्यक्ति जल सकता था | इस रेखा अब लोग लक्ष्मण रेखा के नाम से जानते है | लक्ष्मण के आश्रम से निकलते ही रावण, एक शादू के रूप में आश्रम के भर आया और भिक्षा मांगने लगा | जब सीता उसे लक्षमण रेखा भीतर से भिक्षा देने लगी तो उसने भिक्षा लेने से मना कर दिया| उसने सीता को लक्षमण रेखा से बाहर बुलया और अपने रूप में वापिस आ गया और सीता को अपने साथ हरण कर ले गया| 

सीता हरण हिंदी में /Conclusion of sita haran in ramayan in hindi 

रामायण को तुलसीदास ने आगे अवधि हिंदी में संकलित किया | रामचरितमानस तुलसीदाद नाम के एक महँ कवी ने संकलित किया था | हमने अभी सीता हरण तक की कहानी को पढ़ा इसके आगे रामायण में बहुत ही रोचक कथाये है | धन्यवाद्

FAQ

सीता का हरण कहां से हुआ था?

सीता का हरण पंचवटी आश्रम से किया था |

सीता हरण का अर्थ|

सीता हरण का अर्थ है , रावण द्वारा सीता का हरण |

सीता का हरण किसने किया ?

सीता का हरण लंकापति रावण ने किया |

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